Sai Chalisa Lyrics in Hindi & English – श्री साईं चालीसा लिरिक्स

Sai Chalisa Lyrics in Hindi & English - श्री साईं चालीसा लिरिक्स

श्री साईं चालीसा लिरिक्स, Sai Chalisa Lyrics in Hindi and English, Raja Pandit और Harish Gwala द्वारा गायी हुई भगवान साईं की चालीसा जिससे इंसान के बिगड़े काम बन जाते है

Sai Chalisa Lyrics in Hindi

पहले साई के चरणों में
अपना शीश नमाऊं मैं
कैसे शिरडी साई आए
सारा हाल सुनाऊं मैं
कौन है माता, पिता कौन है
यह ना किसी ने भी जाना
कहाँ जन्म साई ने धारा
प्रश्र्न पहेली रहा बना

कोई कहे अयोध्या के
ये रामचंद्र भगवान हैं
कोई कहता साई बाबा
पवन पुत्र हनुमान हैं
कोई कहता मंगल मूर्ति
श्री गजानंद हैं साई
कोई कहता गोकुल मोहन
देवकी नन्दन हैं साई

शंकर समझे भकत कई तो
बाबा को भजते रहते
कोई कह अवतार दत्त का
पूजा साई की करते
कोई भी मानो उनको तुम
पर साई हैं सच्चे भगवान
बड़े दयालु दीनबंधु
कितनों को दिया जीवन दान

कई वर्ष पहले की घटना
तुम्हें सुनाऊँगा मैं बात
किसी भाग्यशाली की
शिरडी में आई थी बारात
आया साथ उसी के था
बालक एक बहुत सुन्दर
आया, आकर वहीं बस गया
पावन शिरडी किया नगर

कई दिनों तक भटकता
भिक्षा मांग उसने दर-दर
और दिखाई ऐसी लीला
जग में जो हो गई अमर
जैसे – जैसे उमर बढ़ी
बढ़ती ही वैसे गई शान
घर-घर होने लगा नगर में
साई बाबा का गुणगान

दिग दिगंत में लगा गूँजने
फिर तो साई जी का नाम
दीन – दुखी की रक्षा करना
यही रहा बाबा का काम
बाबा के चरणों में जाकर
जो कहता मैं हूँ निर्धन
दया उसी पर होती उनकी
खुल जाते दुख के बंधन

कभी किसी ने मांगी भिक्षा
दो बाबा मुझको संतान
एवमस्तु तब कहकर साई
देते थे उसको वरदान
स्वयं दुखी बाबा हो जाते
दीन – दुखीजन का लख हाल
अंत:करण श्री साई का
सागर जैसा रहा विशाल

भकत एक मद्रासी आया
घर का बहुत बड़ा धनवान
माल खजाना बेहद उसका
केवल नहीं रही संतान
लगा मनाने साईनाथ को
बाबा मुझ पर दया करो
झंझा से झंकृत नैया को
तुम्हीं मेरी पार करो

कुलदीपक के बिना अँधेरा
छाया हुआ घर में मेरे
इसलिए आया हूँ बाबा
होकर शरणागत तेरे
कुलदीपक के अभाव में
व्यर्थ है दौलत की माया
आज भिखारी बनकर बाबा
शरण तुम्हारी मैं आया

दे-दो मुझको पुत्र-दान
मैं ऋणी रहूँगा जीवन भर
और किसी की आशा न मुझको
सिर्फ भरोसा है तुम पर
अनुनय – विनय बहुत की उसने
चरणों में धर के शीश
तब प्रसन्न होकर बाबा ने
दिया भकत को यह आशीष

अल्ला भला करेगा तेरा
पुत्र जन्म हो तेरे घर
कृपा रहेगी तुझ पर उसकी
और तेरे उस बालक पर
अब तक नहीं किसी ने पाया
साई की कृपा का पार
पुत्र रत्न दे मद्रासी को
धन्य किया उसका संसार

तन-मन से जो भजे उसी का
जग में होता है उद्धार
सांच को आंच नहीं हैं कोई
सदा झूठ की होती हार
मैं हूँ सदा सहारे उसके
सदा रहूँगा उसका दास
साई जैसा प्रभु मिला है
इतनी ही कम है क्या आस

मेरा भी दिन था एक ऐसा
मिलती नहीं मुझे रोटी
तन पर कपड़ा दूर रहा था
शेष रही नन्हीं सी लंगोटी
सरिता सन्मुख होने पर भी
मैं प्यासा का प्यासा था
दुर्दिन मेरा मेरे ऊपर
दावाग्नी बरसाता था

धरती के अतिरिक्त जगत में
मेरा कुछ अवलंब न था
बना भिखारी मैं दुनिया में
दर-दर ठोकर खाता था
ऐसे में एक मित्र मिला जो
परम भकत साई का था
जंजालों से मुकत मगर
जगत में वह भी मुझसा था

बाबा के दर्शन की खातिर
मिल दोनों ने किया विचार
साई जैसे दया मूर्ति के
दर्शन को हो गए तैयार
पावन शिरडी नगर में जाकर
देख मतवाली मूर्ति
धन्य जन्म हो गया कि हमने
जब देखी साई की सूरति

जब से किए हैं दर्शन हमने
दुख सारा काफूर हो गया
संकट सारे मिटे और
विपदाओं का अंत हो गया
मान और सम्मान मिला
भिक्षा में हमको बाबा से
प्रतिबिंबित हो उठे जगत में
हम साई की आभा से

बाबा ने सन्मान दिया है
मान दिया इस जीवन में
इसका ही संबल ले मैं
हसंता जाऊँगा जीवन में
साई की लीला का मेरे
मन पर ऐसा असर हुआ
लगता जगती के कण-कण में
जैसे हो वह भरा हुआ

काशीराम बाबा का भक्त
शिरडी में रहता था
मैं साई का साई मेरा
वह दुनिया से कहता था
सीकर स्वयं वस्त्र बेचता
ग्राम – नगर बाजारों में
झंकृत उसकी हृदय तंत्री थी
साई की झंकारों में

स्तब्ध निशा थी थे सोए
रजनी आंचल में चांद सितारे
नहीं सूझता रहा हाथ को
हाथ तिमिर के मारे
वस्त्र बेचकर लौट रहा था
हाय हाट से काशी
विचित्र बड़ा संयोग कि उस दिन
आता था एकाकी

घेर राह में खड़े हो गए
उसे कुटिल अन्यायी
मारो काटो लूटो इसकी ही
ध्वनि पड़ी सुनाई
लूट पीटकर उसे वहाँ से
कुटिल गए चम्पत हो
आघातों में मर्माहत हो
उसने दी संज्ञा खो

बहुत देर तक पड़ा रह वह
वहीं उसी हालत में
जाने कब कुछ होश हो उठा
वहीं उसकी पलक में
अनजाने ही उसके मुंह से
निकल पड़ा था साई
जिसकी प्रतिध्वनि शिरडी में
बाबा को पड़ी सुनाई

क्षुब्ध हो उठा मानस उनका
बाबा गए विकल हो
लगता जैसे घटना सारी
घटी उन्हीं के सन्मुख हो
उन्मादी से इधर – उधर तब
बाबा लेगे भटकने
सन्मुख चीजें जो भी आई
उनको लगने पटकने

और धधकते अंगारों में
बाबा ने अपना कर डाला
हुए सशंकित सभी वहाँ
लख तांडवनृत्य निराला
समझ गए सब लोग
कि कोई भकत पड़ा संकट में
क्षुभित खड़े थे सभी वहाँ
पर पड़े हुए विस्मय में

उसे बचाने की ही खातिर
बाबा आज विकल है
उसकी ही पीड़ा से पीड़‍ित
उनकी अंत:स्थल है
इतने में ही विविध ने अपनी
विचित्रता दिखलाई
लख कर जिसको जनता की
श्रद्धा सरिता लहराई

लेकर संज्ञाहीन भकत को
गाड़ी एक वहाँ आई
सन्मुख अपने देख भकत को
साई की आँखे भर आ
शांत, धीर, गंभीर, सिंधु-सा
बाबा का अंत:स्थल
आज न जाने क्यों रह-रहकर
हो जाता था चंचल

आज दया की मूर्ति स्वयं था
बना हुआ उपचारी
और भकत के लिए आज था
देव बना प्रतिहारी
आज भकत की विषम परीक्षा में
सफल हुआ था काशी
उसके ही दर्शन की खातिर थे
उमड़े नगर-निवासी

जब भी और जहाँ भी कोई
भकत पड़े संकट में
उसकी रक्षा करने बाबा
आते हैं पलभर में
युग-युग का है सत्य यह
नहीं कोई नई कहानी
आपद्‍ग्रस्त भकत जब होता
जाते खुद अंर्तयामी

भेदभाव से परे पुजारी
मानवता के थे साई
जितने प्यारे हिन्दू-मुस्लिम
उतने ही थे सिक्ख ईसाई
भेद-भाव मंदिर-मिस्जद का
तोड़-फोड़ बाबा ने डाला
राह रहीम सभी उनके थे
कृष्ण करीम अल्लाताला

घंटे की प्रतिध्वनि से गूंजा
मस्जिद का कोना-कोना
मिले परस्पर हिन्दू – मुस्लिम
प्यार बढ़ा दिन – दिन दूना
चमत्कार था कितना सुन्दर
परिचय इस काया ने दी
और नीम कडुवाहट में भी
मिठास बाबा ने भर दी

सब को स्नेह दिया साई ने
सबको संतुल प्यार किया
जो कुछ जिसने भी चाहा
बाबा ने उसको वही दिया
ऐसे स्नेहशील भाजन का
नाम सदा जो जपा करे
पर्वत जैसा दुख न क्यों हो
पलभर में वह दूर टरे

साई जैसा दाता हमने
अरे नहीं देखा कोई
जिसके केवल दर्शन से ही
सारी विपदा दूर गई
तन में साई, मन में साई
साई-साई भजा करो
अपने तन की सुधि – बुधि खोकर
सुधि उसकी तुम किया करो

जब तू अपनी सुधि तज
बाबा की सुधि किया करेगा
और रात-दिन बाबा-बाबा
ही तू रटा करेगा
तो बाबा को अरे! विवश हो
सुधि तेरी लेनी ही होगी
तेरी हर इच्छा बाबा को
पूरी ही करनी होगी

जंगल जंगल भटक न पागल
और ढूढ़ने बाबा को
एक जगह केवल शिरडी में
तू पाएगा बाबा को
धन्य जगत में प्राणी है वह
जिसने बाबा को पाया
दुख में, सुख में प्रहर आठ हो
साई का ही गुण गाया

गिरे संकटों के पर्वत
चाहे बिजली ही टूट पड़े
साई का ले नाम सदा तुम
सन्मुख सबके रहो अड़े
इस बूढ़े की सुन करामत
तुम हो जाओगे हैरान
दंग रह गए सुनकर जिसको
जाने कितने चतुर सुजान

एक बार शिरडी में साधु
ढ़ोंगी था कोई आया
भोली – भाली नगर-निवासी
जनता को था भरमाया
जड़ी-बूटियाँ उन्हें दिखाकर
करने लगा वह भाषण
कहने लगा सुनो श्रोतागण
घर मेरा है वृन्दावन

औषधि मेरे पास एक है
और अजब इसमें शक्ति
इसके सेवन करने से ही
हो जाती दुख से मुक्ति
अगर मुकत होना चाहो
तुम संकट से बीमारी से
तो है मेरा नम्र निवेदन
हर नर से, हर नारी से

लो खरीद तुम इसको
इसकी सेवन विधियां हैं न्यारी
यद्यपि तुच्छ वस्तु है यह
गुण उसके हैं अति भारी
जो है संतति हीन यहाँ यदि
मेरी औषधि को खाए
पुत्र – रत्न हो प्राप्त
अरे वह मुँह मांगा फल पाए

औषधि मेरी जो न खरीदे
जीवन भर पछताएगा
मुझ जैसा प्राणी शायद ही
अरे यहाँ आ पाएगा
दुनिया दो दिनों का मेला है
मौज शौक तुम भी कर लो
अगर इससे मिलता है सब कुछ
तुम भी इसको ले लो

हैरानी बढ़ती जनता की
देख इसकी कारस्तानी
प्रमुदित वह भी मन ही मन था
देख लोगों की नादानी
खबर सुनाने बाबा को यह
गया दौड़कर सेवक एक
सुनकर भृकुटी तनी और
विस्मरण हो गया सभी विवेक

हुक्म दिया सेवक को
सत्वर पकड़ दुष्ट को लाओ
या शिरडी की सीमा से
कपटी को दूर भगाओ
मेरे रहते भोली – भाली
शिरडी की जनता को
कौन नीच ऐसा जो
साहस करता है छलने को

पलभर में ऐसे ढोंगी
कपटी नीच लुटेरे को
महानाश के महागर्त में पहुंचना
दूं जीवन भर को
तनिक मिला आभास मदारी
क्रूर, कुटिल अन्यायी को
काल नाचता है अब सिर पर
गुस्सा आया साई को

पलभर में सब खेल बंद कर
भागा सिर पर रखकर पैर
सोच रहा था मन ही मन
भगवान नहीं है अब खैर
सच है साई जैसा दानी
मिल न सकेगा जग में
अंश ईश का साई बाबा
उन्हें न कुछ भी मुश्किल जग में

स्नेह शील सौजन्य आदि का
आभूषण धारण कर
बढ़ता इस दुनिया में जो भी
मानव सेवा के पथ पर
वही जीत लेता है जगत के
जन जन का अंत:स्थल
उसकी एक उदासी ही
जग को कर देती है विह्वल

जब-जब जग में भार पाप का
बढ़ – बढ़ ही जाता है
उसे मिटाने की ही खातिर
अवतारी ही आता है
पाप और अन्याय सभी कुछ
इस जगती का हर के
दूर भगा देता दुनिया के
दानव को क्षण भर के

ऐसे ही अवतारी साईं
मृत्युलोक में आकर
समता का यह पाठ पढ़ाया
सबको अपना आप मिटाकर
नाम द्वारका मस्जिद का
रखा शिरडी में साई ने
दाप, ताप, संताप मिटाया
जो कुछ आया साई ने

सदा याद में मस्त राम की
बैठे रहते थे साई
पहर आठ ही राम नाम को
भजते रहते थे साई
सूखी – रूखी ताजी बासी
चाहे या होवे पकवान
सौदा प्यार के भूखे साई की
खातिर थे सभी समान

स्नेह और श्रद्धा से अपनी
जन जो कुछ दे जाते थे
बड़े चाव से उस भोजन को
बाबा पावन करते थे
कभी-कभी मन बहलाने को
बाबा बाग में जाते थे
प्रमुदित मन में निरख प्रकृति
आनंदित वे हो जाते थे

रंग-बिरंगे पुष्प बाग के
मन्द – मन्द हिल – डुल करके
बीहड़ वीराने मन में भी
स्नेह सलिल भर जाते थे
ऐसी सुमधुर बेला में भी
दुख आपात, विपदा के मारे
अपने मन की व्यथा सुनाने
जन रहते बाबा को घेरे

सुनकर जिनकी करूणकथा को
नयन कमल भर आते थे
दे विभूति हर व्यथा शांति
उनके उर में भर देते थे
जाने क्या अद्भुत शक्ति
उस विभूति में होती थी
जो धारण करते मस्तक पर
दुख सारा हर लेती थी

धन्य मनुज वे साक्षात् दर्शन
जो बाबा साई के पाए
धन्य कमल कर उनके जिनसे
चरण-कमल वे परसाए
काश निर्भय तुमको भी
साक्षात् साई मिल जाता
वर्षों से उजड़ा चमन अपना
फिर से आज खिल जाता

गर पकड़ता मैं चरण श्री के
नहीं छोड़ता उम्रभर
मना लेता मैं जरूर उनको
गर रूठते साई मुझ पर

Sai Chalisa Lyrics in English

pahale sai ke charanon mein
apana shish namaoon main
kaise shiradi sai ae
sara hal sunaoon main
kaun hai mata, pita kaun hai
yah na kisi ne bhi jana
kahan janm sai ne dhara
prashrn paheli raha bana

koi kahe ayodhya ke
ye ramachandr bhagavan hain
koi kahata sai baba
pavan putr hanuman hain
koi kahata mangal moorti
shri gajanand hain sai
koi kahata gokul mohan
devaki nandan hain sai

shankar samajhe bhakat kai to
baba ko bhajate rahate
koi kah avatar datt ka
pooja sai ki karate
koi bhi mano unako tum
par sai hain sachche bhagavan
bade dayalu dinabandhu
kitanon ko diya jivan dan

kai varsh pahale ki ghatana
tumhen sunaoonga main bat
kisi bhagyashali ki
shiradi mein ai thi barat
aya sath usi ke tha
balak ek bahut sundar
aya, akar vahin bas gaya
pavan shiradi kiya nagar

kai dinon tak bhatakata
bhiksha mang usane dar-dar
aur dikhai aisi lila
jag mein jo ho gai amar
jaise – jaise umar badhi
badhati hi vaise gai shan
ghar-ghar hone laga nagar mein
sai baba ka gunagan

dig digant mein laga goonjane
phir to sai ji ka nam
din – dukhi ki raksha karana
yahi raha baba ka kam
baba ke charanon mein jakar
jo kahata main hoon nirdhan
daya usi par hoti unaki
khul jate dukh ke bandhan

kabhi kisi ne mangi bhiksha
do baba mujhako santan
evamastu tab kahakar sai
dete the usako varadan
svayan dukhi baba ho jate
din – dukhijan ka lakh hal
ant:karan shri sai ka
sagar jaisa raha vishal

bhakat ek madrasi aya
ghar ka bahut bada dhanavan
mal khajana behad usaka
keval nahin rahi santan
laga manane sainath ko
baba mujh par daya karo
jhanjha se jhankrt naiya ko
tumhin meri par karo

kuladipak ke bina andhera
chhaya hua ghar mein mere
isalie aya hoon baba
hokar sharanagat tere
kuladipak ke abhav mein
vyarth hai daulat ki maya
aj bhikhari banakar baba
sharan tumhari main aya

de-do mujhako putr-dan
main rni rahoonga jivan bhar
aur kisi ki asha na mujhako
sirph bharosa hai tum par
anunay – vinay bahut ki usane
charanon mein dhar ke shish
tab prasann hokar baba ne
diya bhakat ko yah ashish

alla bhala karega tera
putr janm ho tere ghar
krpa rahegi tujh par usaki
aur tere us balak par
ab tak nahin kisi ne paya
sai ki krpa ka par
putr ratn de madrasi ko
dhany kiya usaka sansar

tan-man se jo bhaje usi ka
jag mein hota hai uddhar
sanch ko anch nahin hain koi
sada jhooth ki hoti har
main hoon sada sahare usake
sada rahoonga usaka das
sai jaisa prabhu mila hai
itani hi kam hai kya as

mera bhi din tha ek aisa
milati nahin mujhe roti
tan par kapada door raha tha
shesh rahi nanhin si langoti
sarita sanmukh hone par bhi
main pyasa ka pyasa tha
durdin mera mere oopar
davagni barasata tha

dharati ke atirikt jagat mein
mera kuchh avalamb na tha
bana bhikhari main duniya mein
dar-dar thokar khata tha
aise mein ek mitr mila jo
param bhakat sai ka tha
janjalon se mukat magar
jagat mein vah bhi mujhasa tha

baba ke darshan ki khatir
mil donon ne kiya vichar
sai jaise daya moorti ke
darshan ko ho gae taiyar
pavan shiradi nagar mein jakar
dekh matavali moorti
dhany janm ho gaya ki hamane
jab dekhi sai ki soorati

jab se kie hain darshan hamane
dukh sara kaphoor ho gaya
sankat sare mite aur
vipadaon ka ant ho gaya
man aur samman mila
bhiksha mein hamako baba se
pratibimbit ho uthe jagat mein
ham sai ki abha se

baba ne sanman diya hai
man diya is jivan mein
isaka hi sambal le main
hasanta jaoonga jivan mein
sai ki lila ka mere
man par aisa asar hua
lagata jagati ke kan-kan mein
jaise ho vah bhara hua

kashiram baba ka bhakt
shiradi mein rahata tha
main sai ka sai mera
vah duniya se kahata tha
sikar svayan vastr bechata
gram – nagar bajaron mein
jhankrt usaki hrday tantri thi
sai ki jhankaron mein

stabdh nisha thi the soe
rajani anchal mein chand sitare
nahin soojhata raha hath ko
hath timir ke mare
vastr bechakar laut raha tha
hay hat se kashi
vichitr bada sanyog ki us din
ata tha ekaki

gher rah mein khade ho gae
use kutil anyayi
maro kato looto isaki hi
dhvani padi sunai
loot pitakar use vahan se
kutil gae champat ho
aghaton mein marmahat ho
usane di sangya kho

bahut der tak pada rah vah
vahin usi halat mein
jane kab kuchh hosh ho utha
vahin usaki palak mein
anajane hi usake munh se
nikal pada tha sai
jisaki pratidhvani shiradi mein
baba ko padi sunai

kshubdh ho utha manas unaka
baba gae vikal ho
lagata jaise ghatana sari
ghati unhin ke sanmukh ho
unmadi se idhar – udhar tab
baba lege bhatakane
sanmukh chijen jo bhi ai
unako lagane patakane

aur dhadhakate angaron mein
baba ne apana kar dala
hue sashankit sabhi vahan
lakh tandavanrty nirala
samajh gae sab log
ki koi bhakat pada sankat mein
kshubhit khade the sabhi vahan
par pade hue vismay mein

use bachane ki hi khatir
baba aj vikal hai
usaki hi pida se pid‍it
unaki ant:sthal hai
itane mein hi vividh ne apani
vichitrata dikhalai
lakh kar jisako janata ki
shraddha sarita laharai

lekar sangyahin bhakat ko
gadi ek vahan ai
sanmukh apane dekh bhakat ko
sai ki ankhe bhar a
shant, dhir, gambhir, sindhu-sa
baba ka ant:sthal
aj na jane kyon rah-rahakar
ho jata tha chanchal

aj daya ki moorti svayan tha
bana hua upachari
aur bhakat ke lie aj tha
dev bana pratihari
aj bhakat ki visham pariksha mein
saphal hua tha kashi
usake hi darshan ki khatir the
umade nagar-nivasi

jab bhi aur jahan bhi koi
bhakat pade sankat mein
usaki raksha karane baba
ate hain palabhar mein
yug-yug ka hai saty yah
nahin koi nai kahani
apad‍grast bhakat jab hota
jate khud anrtayami

bhedabhav se pare pujari
manavata ke the sai
jitane pyare hindoo-muslim
utane hi the sikkh isai
bhed-bhav mandir-misjad ka
tod-phod baba ne dala
rah rahim sabhi unake the
krshn karim allatala

ghante ki pratidhvani se goonja
masjid ka kona-kona
mile paraspar hindoo – muslim
pyar badha din – din doona
chamatkar tha kitana sundar
parichay is kaya ne di
aur nim kaduvahat mein bhi
mithas baba ne bhar di

sab ko sneh diya sai ne
sabako santul pyar kiya
jo kuchh jisane bhi chaha
baba ne usako vahi diya
aise snehashil bhajan ka
nam sada jo japa kare
parvat jaisa dukh na kyon ho
palabhar mein vah door tare

sai jaisa data hamane
are nahin dekha koi
jisake keval darshan se hi
sari vipada door gai
tan mein sai, man mein sai
sai-sai bhaja karo
apane tan ki sudhi – budhi khokar
sudhi usaki tum kiya karo

jab too apani sudhi taj
baba ki sudhi kiya karega
aur rat-din baba-baba
hi too rata karega
to baba ko are! vivash ho
sudhi teri leni hi hogi
teri har ichchha baba ko
poori hi karani hogi

jangal, jangal bhatak na pagal
aur dhoodhane baba ko
ek jagah keval shiradi mein
too paega baba ko
dhany jagat mein prani hai vah
jisane baba ko paya
dukh mein, sukh mein prahar ath ho
sai ka hi gun gaya

gire sankaton ke parvat
chahe bijali hi toot pade
sai ka le nam sada tum
sanmukh sabake raho ade
is boodhe ki sun karamat
tum ho jaoge hairan
dang rah gae sunakar jisako
jane kitane chatur sujan

ek bar shiradi mein sadhu
dhongi tha koi aya
bholi – bhali nagar-nivasi
janata ko tha bharamaya
jadi-bootiyan unhen dikhakar
karane laga vah bhashan
kahane laga suno shrotagan
ghar mera hai vrndavan

aushadhi mere pas ek hai
aur ajab isamen shakti
isake sevan karane se hi
ho jati dukh se mukti
agar mukat hona chaho
tum sankat se bimari se
to hai mera namr nivedan
har nar se, har nari se

lo kharid tum isako
isaki sevan vidhiyan hain nyari
yadyapi tuchchh vastu hai yah
gun usake hain ati bhari
jo hai santati hin yahan yadi
meri aushadhi ko khae
putr – ratn ho prapt
are vah munh manga phal pae

aushadhi meri jo na kharide
jivan bhar pachhataega
mujh jaisa prani shayad hi
are yahan a paega
duniya do dinon ka mela hai
mauj shauk tum bhi kar lo
agar isase milata hai sab kuchh
tum bhi isako le lo

hairani badhati janata ki
dekh isaki karastani
pramudit vah bhi man hi man tha
dekh logon ki nadani
khabar sunane baba ko yah
gaya daudakar sevak ek
sunakar bhrkuti tani aur
vismaran ho gaya sabhi vivek

hukm diya sevak ko
satvar pakad dusht ko lao
ya shiradi ki sima se
kapati ko door bhagao
mere rahate bholi – bhali
shiradi ki janata ko
kaun nich aisa jo
sahas karata hai chhalane ko

palabhar mein aise dhongi
kapati nich lutere ko
mahanash ke mahagart mein pahunchana
doon jivan bhar ko
tanik mila abhas madari
kroor, kutil anyayi ko
kal nachata hai ab sir par
gussa aya sai ko

palabhar mein sab khel band kar
bhaga sir par rakhakar pair
soch raha tha man hi man
bhagavan nahin hai ab khair
sach hai sai jaisa dani
mil na sakega jag mein
ansh ish ka sai baba
unhen na kuchh bhi mushkil jag mein

sneh shil saujany adi ka
abhooshan dharan kar
badhata is duniya mein jo bhi
manav seva ke path par
vahi jit leta hai jagat ke
jan jan ka ant:sthal
usaki ek udasi hi
jag ko kar deti hai vihval

jab-jab jag mein bhar pap ka
badh – badh hi jata hai
use mitane ki hi khatir
avatari hi ata hai
pap aur anyay sabhi kuchh
is jagati ka har ke
door bhaga deta duniya ke
danav ko kshan bhar ke

aise hi avatari sain
mrtyulok mein akar
samata ka yah path padhaya
sabako apana ap mitakar
nam dvaraka masjid ka
rakha shiradi mein sai ne
dap, tap, santap mitaya
jo kuchh aya sai ne

sada yad mein mast ram ki
baithe rahate the sai
pahar ath hi ram nam ko
bhajate rahate the sai
sookhi – rookhi taji basi
chahe ya hove pakavan
sauda pyar ke bhookhe sai ki
khatir the sabhi saman

sneh aur shraddha se apani
jan jo kuchh de jate the
bade chav se us bhojan ko
baba pavan karate the
kabhi-kabhi man bahalane ko
baba bag mein jate the
pramudit man mein nirakh prakrti
anandit ve ho jate the

rang-birange pushp bag ke
mand – mand hil – dul karake
bihad virane man mein bhi
sneh salil bhar jate the
aisi sumadhur bela mein bhi
dukh apat, vipada ke mare
apane man ki vyatha sunane
jan rahate baba ko ghere

sunakar jinaki karoonakatha ko
nayan kamal bhar ate the
de vibhooti har vyatha shanti
unake ur mein bhar dete the
jane kya adbhut shakti
us vibhooti mein hoti thi
jo dharan karate mastak par
dukh sara har leti thi

dhany manuj ve sakshat darshan
jo baba sai ke pae
dhany kamal kar unake jinase
charan-kamal ve parasae
kash nirbhay tumako bhi
sakshat sai mil jata
varshon se ujada chaman apana
phir se aj khil jata

gar pakadata main charan shri ke
nahin chhodata umrabhar
mana leta main jaroor unako
gar roothate sai mujh par

श्री साईं चालीसा – YouTube Video

Sai Chalisa
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